aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
1749 - 1788
मुग़ल साम्राज्य के युवराज, शाह आलम सानी के बेटे
आख़िर गिल अपनी सर्फ़-ए-दर-ए-मय-कदा हुई
पहुँचे वहाँ ही ख़ाक जहाँ का ख़मीर हो
कहें सो किस से 'जहाँदार' उस की नज़रों में
रक़ीब काम के ठहरे और हम हैं ना-कारे
तिरे इश्क़ से जब से पाले पड़े हैं
हमें अपने जीने के लाले पड़े हैं
बसान-ए-नक़्श-ए-क़दम तेरे दर से अहल-ए-वफ़ा
उठाते सर नहीं हरगिज़ तबाह के मारे
मिरा ख़ून-ए-दिल यूँ बहा दश्त में
कि जंगल में लोहू के थाले पड़े
Deewan-e-Jahan Dar
1966
दीवान-ए-जहांदार
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