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मिर्ज़ा जवाँ बख़्त जहाँदार

1749 - 1788

मुग़ल साम्राज्य के युवराज, शाह आलम सानी के बेटे

मुग़ल साम्राज्य के युवराज, शाह आलम सानी के बेटे

मिर्ज़ा जवाँ बख़्त जहाँदार

ग़ज़ल 30

अशआर 8

आख़िर गिल अपनी सर्फ़-ए-दर-ए-मय-कदा हुई

पहुँचे वहाँ ही ख़ाक जहाँ का ख़मीर हो

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तिरे इश्क़ से जब से पाले पड़े हैं

हमें अपने जीने के लाले पड़े हैं

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मुझ दिल में है जो बुत की परस्तिश की आरज़ू

देखी नहीं वो आज तलक बरहमन के बीच

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कहें सो किस से 'जहाँदार' उस की नज़रों में

रक़ीब काम के ठहरे और हम हैं ना-कारे

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की दिल ने दिल-बरान-ए-जहाँ की बहुत तलाश

कुइ दिल-रुबा मिला है दिल-ख़्वाह क्या करे

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पुस्तकें 2

 

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