मेहदी अली ख़ान ज़की लखनवी के शेर
इक ज़रा तेग़-ए-निगह को जो इशारा हो जाए
आप का नाम हो और काम हमारा हो जाए
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एक नश्तर है कि देता है रग-ए-जाँ को ख़राश
एक काँटा है कि पहलू में चुभोता है कोई
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टैग : काँटा
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