मेला राम वफ़ा
ग़ज़ल 27
नज़्म 3
अशआर 8
गो क़यामत से पेशतर न हुई
तुम न आए तो क्या सहर न हुई
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तुम भी करोगे जब्र शब ओ रोज़ इस क़दर
हम भी करेंगे सब्र मगर इख़्तियार तक
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कहना ही मिरा क्या है कि मैं कुछ नहीं कहता
ये भी तुम्हें धोका है कि मैं कुछ नहीं कहता
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इतनी तौहीन न कर मेरी बला-नोशी की
साक़िया मुझ को न दे माप के पैमाने से
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