मिर्ज़ा इहसान बेग के शेर
कुछ नहीं इख़्तियार में फिर भी
हर ख़ता मेरी हर क़ुसूर मिरा
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बहुत लतीफ़ हैं कैफ़िय्यतें मोहब्बत की
वो बुल-हवस है जो करता है जैब ओ दामन चाक
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उस आस्ताँ पे सज्दा का भी कुछ रहा न होश
अल्लाह-रे इज़्तिराब जबीन-ए-नियाज़ का
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