aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
1858 - 1931 | लखनऊ, भारत
उन्हीं का नाम ले ले कर कोई फ़ुर्क़त में मरता है
कभी वो भी तो सुन लेंगे जो बदनामी से डरते हैं
चंद बातें वो जो हम रिंदों में थीं ज़र्बुल-मसल
अब सुना मिर्ज़ा कि दर्द-ए-अहल-ए-इरफ़ाँ हो गईं
ज़र्बुल-मसल है होते हैं माशूक़ बे-वफ़ा
ये कुछ तुम्हारा ज़िक्र नहीं है ख़फ़ा न हो
बर्बाद कर के मुझ को न हों मुन्फ़इल हुज़ूर
मैं आप मो'तरिफ़ हूँ कि मेरा क़ुसूर था
शिकवों में भी अंदाज़ न हो हुस्न-ए-तलब का
हाँ ऐ दिल-ए-बेताब रहे पास अदब का
Akhalq-e-Naqumajis
1929
Akhlaq-e-Naqumajis
1931
Akhlaq-e-Nuqumajis
Akhtari Begam
अख़तरी बेग़म
1952
Bahram Ki Rihai
Bahram Ki Rihayi
Fethers Licesus Aur Brotaghoras
1934
Funn-e-Zood Nawesi
हिकमतुल इशराक
1925
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