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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

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मिर्ज़ा रज़ा बर्क़

1790 - 1857 | लखनऊ, भारत

लखनऊ स्कूल के प्रमुख क्लासिकी शायर / अवध के आख़री नवाब, वाजिद अली शाह के उस्ताद

लखनऊ स्कूल के प्रमुख क्लासिकी शायर / अवध के आख़री नवाब, वाजिद अली शाह के उस्ताद

मिर्ज़ा रज़ा बर्क़

ग़ज़ल 21

अशआर 21

सनम वस्ल की तदबीरों से क्या होता है

वही होता है जो मंज़ूर-ए-ख़ुदा होता है

हमारे ऐब ने बे-ऐब कर दिया हम को

यही हुनर है कि कोई हुनर नहीं आता

इतना तो जज़्ब-ए-इश्क़ ने बारे असर किया

उस को भी अब मलाल है मेरे मलाल का

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दौलत नहीं काम आती जो तक़दीर बुरी हो

क़ारून को भी अपना ख़ज़ाना नहीं मिलता

किस तरह मिलें कोई बहाना नहीं मिलता

हम जा नहीं सकते उन्हें आना नहीं मिलता

पुस्तकें 2

 

ऑडियो 8

असर ज़ुल्फ़ का बरमला हो गया

किस तरह मिलें कोई बहाना नहीं मिलता

न कोई उन के सिवा और जान-ए-जाँ देखा

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