मोहम्मद इज़हारुल हक़ के शेर
घिरा हुआ हूँ जनम-दिन से इस तआक़ुब में
ज़मीन आगे है और आसमाँ मिरे पीछे
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टैग : जन्मदिन
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अँधेरी शाम थी बादल बरस न पाए थे
वो मेरे पास न था और मैं खुल के रोया था
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तिरा पाँव शाम पे आ गया था कि चाँद था
तिरा हिज्र सुब्ह को जल उठा था कि फूल था
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कोई ज़ारी सुनी नहीं जाती कोई जुर्म मुआफ़ नहीं होता
इस धरती पर इस छत के तले कोई तेरे ख़िलाफ़ नहीं होता
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