मोहम्मद जावेद अनवर के शेर
इक बला कूकती है गलियों में
सब सिमट कर घरों में बैठ रहें
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टैग : सोशल डिस्टेन्सिंग शायरी
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हर फूल पे क़दग़न कि तिरी शक्ल पे निकले
हर ज़ख़्म पे लाज़िम कि तिरा दस्त-निगर हो
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