मोहम्मद सईद रज़्मी के शेर
नवाज़िश पर हैं माइल वो करम-ना-आश्ना नज़रें
नियाज़-ए-इश्क़ काम आ ही गया हंगाम-ए-नाज़ आख़िर
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मैं अब हूँ ग़र्क़-ए-जल्वा या कि ख़ुद हूँ साहिब-ए-जल्वा
हुआ है चश्म-ए-नज़्ज़ारा को मुश्किल इम्तियाज़ आख़िर
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