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मुईद रशीदी

1988 | अलीगढ़, भारत

नई नस्ल के प्रमुख नवोदित शायर/साहित्य अकादमी युवा पुरस्कार से सम्मानित

नई नस्ल के प्रमुख नवोदित शायर/साहित्य अकादमी युवा पुरस्कार से सम्मानित

मुईद रशीदी

ग़ज़ल 36

अशआर 146

इक शहर हमारे दिल में है इक शहर हमारी आँखों में

इक महव-ए-तमाशा रहता है इक रहता है नादानी में

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भुर्भुरी सी हड्डियों में वक़्त का सुराग़ था

अपनी क़ब्र खोदने का हौसला नहीं हुआ

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ये क्या ज़रूरी कि सब बा-वफ़ा पुकारें हमें

कोई तो है जो हमें बेवफ़ा पुकारता है

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वफ़ा का हर चलन सिखला दिया था

किसी ने बेवफ़ा होने से पहले

हर क़दम राह में मिलते हैं शनासा चेहरे

हर क़दम राह में मिलती है नई तन्हाई

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पुस्तकें 6

 

चित्र शायरी 1

 

वीडियो 11

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वीडियो का सेक्शन
शायर अपना कलाम पढ़ते हुए
Aanokhon mein shab utar gai, Khwaabon ka silsila raha

मुईद रशीदी

Dekhle meri jaan kitna hai

मुईद रशीदी

Dil ye kehta hai ke haar kar dekhen

मुईद रशीदी

Ek hungama shab o roz bapa rehta hai

मुईद रशीदी

Faseel e shehar se kyun sab ke sab nikal aaye

मुईद रशीदी

Ishq mein lazzat e aazar nikal aati hai

मुईद रशीदी

Khala me dekhta rehta hai Kya pukarta hai

मुईद रशीदी

Main ek nadi hoon meri zaat ek samundar hai

मुईद रशीदी

Ye mojaza hai ki main raat kaat deta hoon

मुईद रशीदी

मुईद रशीदी

Moid Rashidi (from Delhi) is a Poet, critic and recipient of Sahitya Akademy Yuva Puruskar. Poet, critic and recipient of Sahitya Akademy Yuva Puruskar, Moid is well-regarded for his literary criticism in Urdu world. मुईद रशीदी

दरून-ए-ज़ात हुजूम-ए-अज़ाब ठहरा है

मुईद रशीदी

ऑडियो 3

आज कुछ सूरत-ए-अफ़्लाक जुदा लगती है

दरून-ए-ज़ात हुजूम-ए-अज़ाब ठहरा है

मैं कोई दश्त मैं दीवार नहीं कर सकता

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