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मुईन अहसन जज़्बी

1912 - 2005 | अलीगढ़, भारत

प्रमुखतम प्रगतिशील शायरों में विख्यात/ फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ के समकालीन/अपनी गज़ल ‘मरने की दुआएँ क्यों माँगूँ.......’ के लिए प्रसिद्ध, जिसे कई गायकों ने स्वर दिए हैं

प्रमुखतम प्रगतिशील शायरों में विख्यात/ फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ के समकालीन/अपनी गज़ल ‘मरने की दुआएँ क्यों माँगूँ.......’ के लिए प्रसिद्ध, जिसे कई गायकों ने स्वर दिए हैं

मुईन अहसन जज़्बी के ऑडियो

ग़ज़ल

अपनी निगाह-ए-शौक़ को रुस्वा करेंगे हम

नोमान शौक़

जब कभी किसी गुल पर इक ज़रा निखार आया

नोमान शौक़

दाग़-ए-ग़म दिल से किसी तरह मिटाया न गया

नोमान शौक़

दिल सर्द हो तो वा लब-ए-गुफ़्तार क्या करें

मुईन अहसन जज़्बी

बीते हुए दिनों की हलावत कहाँ से लाएँ

नोमान शौक़

मरने की दुआएँ क्यूँ माँगूँ जीने की तमन्ना कौन करे

नोमान शौक़

मिले मुझ को ग़म से फ़ुर्सत तो सुनाऊँ वो फ़साना

नोमान शौक़

नज़्म

तवहहुम

नोमान शौक़

फ़ितरत एक मुफ़लिस की नज़र में

नोमान शौक़

मुतरबा

नोमान शौक़

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