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मुईन शादाब

1971 | दिल्ली, भारत

मुशायरों में ख़ास तौर पर अपनी निज़ामत के लिए जाने जाते हैं

मुशायरों में ख़ास तौर पर अपनी निज़ामत के लिए जाने जाते हैं

मुईन शादाब

ग़ज़ल 19

अशआर 27

क़त्ल का इतना शोर हुआ है

देख रहा हूँ ख़ुद को छू कर

तुझ से मिल कर सब से नाते तोड़ लिए थे

हम ने बादल देख के मटके फोड़ लिए थे

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मुंदमिल दिल का हर इक ज़ख़्म हुआ जाता है

यही सरमाया था जो ख़त्म हुआ जाता है

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ये तेज़ धूप हमें कैसे साँवला करती

हमारे सर पे दुआओं का शामियाना था

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सहाफ़ीयों को कहाँ हाल-ए-दिल सुना बैठे

ये एक बात कई ज़ावियों से लिक्खेंगे

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