मुकेश आलम का ताल्लुक़ सूबा पंजाब से है, आप 14 अगस्त 1969 को होशियारपुर, लुधियाना में पैदा हुए।
मुकेश आलम का शुमार उन शाइरों में होता जिन्होंने शहर-ए-ग़ज़ल में अपनी दुनिया अलग बनाई है और आज के घटनाओं से भरे दौर में जब ग़ज़ल के नाम पर ज़बान-ओ-बयान का शीराज़ा बिखेरा जा रहा है वो बहुत गरिमा और सहिष्णुता के साथ अपना सफ़र जारी रखे हुए हैं। मुकेश आलम की शायरी का अपना एक डिक्शन है जिसके ज़रिये इन्होंने अपना एक नुमायां मक़ाम बनाया है। उनके यहां वो ख़ुलूस और समर्पण मौजूद है जो किसी अच्छे फ़नकार के लिए ज़रूरी है। उनकी शायरी पर ग़ौर करें तो अंदाज़ा होता है कि ज़िंदगी के मुख़्तलिफ़ रंगों को समेटने की कोशिश उनकी शायरी में मौजूद है। उनके यहां ज़िंदगी की ख़ुशनुमाईयां भी हैं और बदनुमाईयां भी। वो मौजूदा दौर के अंतर्विरोधों और नए मसाइल को बहुत ही प्रभावी ढंग से पेश करना बख़ूबी जानते हैं। आपकी शायरी के दो संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं जिनमें से एक देवनागरी में है और एक पंजाबी में। आपकी ग़ज़लें और नज़्में मुल्क की प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में पाबंदी से प्रकाशित होती हैं।