मुख़्तार सिद्दीक़ी
ग़ज़ल 13
नज़्म 5
अशआर 11
क्या क्या पुकारें सिसकती देखीं लफ़्ज़ों के ज़िंदानों में
चुप ही की तल्क़ीन करे है ग़ैरत-मंद ज़मीर हमें
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जिन ख़यालों के उलट फेर में उलझीं साँसें
उन में कुछ और भी साँसों का इज़ाफ़ा कर लें
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फेरा बहार का तो बरस दो बरस में है
ये चाल है ख़िज़ाँ की जो रुक रुक के थम गई
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मैं तो हर धूप में सायों का रहा हूँ जूया
मुझ से लिखवाई सराबों की कहानी तुम ने
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हास्य शायरी 1
लेख 1
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