मुन्नी बाई हिजाब के शेर
दिल बहुत बेचैन बे-आराम है
क्या मोहब्बत का यही अंजाम है
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कहूँगा दावर-ए-महशर कर दिया जाए
कि उम्र भर उसी काफ़िर को मैं ने प्यार किया
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हम और बीच में आते हैं उन की बातों के
उन्हों ने वा'दा किया हम ने ए'तिबार किया
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