मुंतज़िर क़ाएमी
ग़ज़ल 9
नज़्म 1
अशआर 1
जब भी अड़ जाते हैं हर हाल में बैअ'त पे यज़ीद
फिर कफ़न ओढ़ के इंकार निकल आते हैं
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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere