मुशर्रफ़ आलम ज़ौक़ी की कहानियाँ
बाप और बेटा
(1) बाहर गहरा कोहरा गिर रहा था, काफ़ी ठंडी लहर थी। मेज़ पर रखी चाय बर्फ़ बन चुकी थी। काफ़ी देर के बाद बाप के लब थरथराए थे। “मेरा एक घर है” और जवाब में एक शरारत भरी मुस्कुराहट उभरी थी। “और में एक जिस्म हूँ... अपने आपसे सुलह कर लोगे तब भी एक जंग तो तुम्हारे