मुशफ़िक़ ख़्वाजा
अशआर 7
मिरी नज़र में गए मौसमों के रंग भी हैं
जो आने वाले हैं उन मौसमों से डरना क्या
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दिल एक और हज़ार आज़माइशें ग़म की
दिया जला तो था लेकिन हवा की ज़द पर था
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नज़र चुरा के वो गुज़रा क़रीब से लेकिन
नज़र बचा के मुझे देखता भी जाता था
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ये हाल है मिरे दीवार-ओ-दर की वहशत का
कि मेरे होते हुए भी मकान ख़ाली है
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ग़ज़ल 23
क़िस्सा 2
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