मुशीर झंझान्वी के शेर
मसर्रतों ने तो चाहा था दिल में आ जाएँ
हुजूम-ए-ग़म ने मगर उन को रास्ता न दिया
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वो सुन सकें कोई उनवाँ इसी लिए हम ने
बदल बदल के उन्हें दास्ताँ सुनाई है
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