मुस्कान सय्यद रियाज़ के शेर
ज़िंदगी से मुझे ये गिला रह गया
इक हुनर मेरे अंदर दबा रह गया
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राज़ सीने में है काग़ज़ के छुपाया कोई
हर्फ़ लिख लिख के कई बार मिटाया कोई
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