मुस्तफ़ा ज़ैदी
ग़ज़ल 33
नज़्म 43
अशआर 24
इन्हीं पत्थरों पे चल कर अगर आ सको तो आओ
मिरे घर के रास्ते में कोई कहकशाँ नहीं है
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मिरी रूह की हक़ीक़त मिरे आँसुओं से पूछो
मिरा मज्लिसी तबस्सुम मिरा तर्जुमाँ नहीं है
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इस तरह होश गँवाना भी कोई बात नहीं
और यूँ होश से रहने में भी नादानी है
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इश्क़ इन ज़ालिमों की दुनिया में
कितनी मज़लूम ज़ात है ऐ दिल
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क़ितआ 11
पुस्तकें 12
चित्र शायरी 2
वीडियो 9
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