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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

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मुज़फ्फ़र अहमद मुज़फ्फ़र

1969 | इंग्लैंड

मुज़फ्फ़र अहमद मुज़फ्फ़र

ग़ज़ल 10

अशआर 4

मैं जब भूके परिंदे देखता हूँ अपने आँगन में

मुझे अपने वतन के नंगे बच्चे याद आते हैं

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मुसलमाँ था मगर तेरी अदा-ए-फ़ित्ना-परवर ने

दिखा कर काकुल-ए-पेचाँ मुझे काफ़िर बना डाला

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हज़ारों बार सींचा है इसे ख़ून-ए-रग-ए-जाँ से

तअ'ज्जुब है मिरे गुलशन की वीरानी नहीं जाती

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हम तल्ख़ी-ए-हयात को आसाँ कर सके

सहरा-ए-ज़िंदगी को गुलिस्ताँ कर सके

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