मुज़फ़्फ़र अली असीर
ग़ज़ल 11
अशआर 5
मग़फ़िरत की नज़र आती है बस इतनी सूरत
हम गुनाहों से पशेमान रहा करते हैं
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वाह क्या इस गुल-बदन का शोख़ है रंग-ए-बदन
जामा-ए-आबी अगर पहना गुलाबी हो गया
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काबे चलता हूँ पर इतना तो बता
मय-कदा कोई है ज़ाहिद राह में
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रौनक़ गुलशन जो वो रिंद-ए-शराबी हो गया
फूल साग़र बन गया ग़ुंचा गुलाबी हो गया
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नज़्ज़ारा-ए-क़ातिल ने किया महव ये हम को
गर्दन पे चमकती हुई शमशीर न सूझी
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