मुज़फ़्फ़र रज़्मी
ग़ज़ल 11
अशआर 9
अंदाज़-ए-ग़ज़ल आप का क्या ख़ूब है 'रज़्मी'
महसूस ये होता है क़लम तोड़ दिया है
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इस राज़ को क्या जानें साहिल के तमाशाई
हम डूब के समझे हैं दरिया तिरी गहराई
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क़रीब आओ तो शायद समझ में आ जाए
कि फ़ासले तो ग़लत-फ़हमियाँ बढ़ाते हैं
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ख़ुद पुकारेगी जो मंज़िल तो ठहर जाऊँगा
वर्ना ख़ुद्दार मुसाफ़िर हूँ गुज़र जाऊँगा
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मेरे माहौल में हर सम्त बुरे लोग नहीं
कुछ भले भी मिरे हमराह चले आते हैं
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चित्र शायरी 3
वीडियो 3
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