aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
1933 - 2011 | लाहौर, पाकिस्तान
ज़िंदगी तुझ से हर इक साँस पे समझौता करूँ
शौक़ जीने का है मुझ को मगर इतना भी नहीं
वतन की रेत ज़रा एड़ियाँ रगड़ने दे
मुझे यक़ीं है कि पानी यहीं से निकलेगा
कुछ न कहने से भी छिन जाता है एजाज़-ए-सुख़न
ज़ुल्म सहने से भी ज़ालिम की मदद होती है
हर शख़्स पर किया न करो इतना ए'तिमाद
हर साया-दार शय को शजर मत कहा करो
जभी तो उम्र से अपनी ज़ियादा लगता हूँ
बड़ा है मुझ से कई साल तजरबा मेरा
Al-Hamd
Bab-e-Haram
1984
1992
1976
Barf Ki Nao
Hisaar
1988
Kaba-e-Ishq
1989
Khule Dariche Band Hawa
1993
Lahja
Lahu Ki Hariyali
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