नईम गिलानी
ग़ज़ल 11
अशआर 2
उतनी देर समेटूँ सारे दुख तेरे
जितनी देर ऐ दोस्त बिखर नहीं जाता मैं
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मौत से आगे तक के मंज़र देखे हैं
तन्हाई से यूँही डर नहीं जाता मैं
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