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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

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नईम सिद्दीक़ी

1916 - 2002

नईम सिद्दीक़ी

ग़ज़ल 19

नज़्म 5

 

अशआर 2

शब कितनी बोझल बोझल है हम तन्हा तन्हा बैठे हैं

ऐसे में तुम्हारी याद आई जिस तरह कोई इल्हाम आए

निशाँ तो तेरे चलने से बनेंगे

यहाँ तू ढूँडता है नक़्श-ए-पा क्या

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