नईम सिद्दीक़ी
ग़ज़ल 19
नज़्म 5
अशआर 2
शब कितनी बोझल बोझल है हम तन्हा तन्हा बैठे हैं
ऐसे में तुम्हारी याद आई जिस तरह कोई इल्हाम आए
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निशाँ तो तेरे चलने से बनेंगे
यहाँ तू ढूँडता है नक़्श-ए-पा क्या
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