नजमा शाहीन खोसा के शेर
आख़िरी बार आया था मिलने कोई
हिज्र मुझ को मिला वस्ल की शाम में
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दर्द की लहर में ज़िंदगी बह गई
उम्र यूँ कट गई हिज्र की शाम में
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