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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

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नख़्शब जार्चवि

1920 - 1967 | पाकिस्तान

नख़्शब जार्चवि

ग़ज़ल 24

नज़्म 11

अशआर 2

कोई किस तरह राज़-ए-उल्फ़त छुपाए

निगाहें मिलीं और क़दम डगमगाए

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वा'दे का ए'तिबार तो है वाक़ई मुझे

ये और बात है कि हँसी गई मुझे

 

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