नर्वतम लाल बहार लखनवी के शेर
उन्हीं से मर्तबा मिला हयात को ममात को
जो गोलियों के बीच हक़ की बात कहते आए हैं
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जो बुल-हवस थे हट गए सहम गए सिमट गए
जो टूट गए वो इश्क़ को हयात कहते आए हैं
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