नसीम देहलवी
ग़ज़ल 59
अशआर 52
नाम मेरा सुनते ही शर्मा गए
तुम ने तो ख़ुद आप को रुस्वा किया
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आँखों में है लिहाज़ तबस्सुम-फ़िज़ा हैं लब
शुक्र-ए-ख़ुदा के आज तो कुछ राह पर हैं आप
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कुफ़्र-ओ-दीं के क़ाएदे दोनों अदा हो जाएँगे
ज़ब्ह वो काफ़िर करे मुँह से कहें तकबीर हम
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सैलाब-ए-चश्म-ए-तर से ज़माना ख़राब है
शिकवे कहाँ कहाँ हैं मिरे आब-दीदा के
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रब्त-ए-बाहम के मज़े बाहम रहें तो ख़ूब हैं
याद रखना जान-ए-जाँ गर मैं नहीं तो तू नहीं
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