नसीम निकहत
ग़ज़ल 17
अशआर 4
माना कि मैं हज़ार फ़सीलों में क़ैद हूँ
लेकिन कभी ख़ुलूस से मुझ को बुला के देख
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अपने चेहरे को बदलना तो बहुत मुश्किल है
दिल बहल जाएगा आईना बदल कर देखो
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बंजारे हैं रिश्तों की तिजारत नहीं करते
हम लोग दिखावे की मोहब्बत नहीं करते
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मुझ को ये दर-ब-दरी तू ने ही बख़्शी है मगर
जब चली घर से तो मैं नाम तिरा ले के चली
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