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नसीम सहर

1944

नसीम सहर

ग़ज़ल 13

नज़्म 1

 

अशआर 9

आवाज़ों की भीड़ में इतने शोर-शराबे में

अपनी भी इक राय रखना कितना मुश्किल है

कभी तो सर्द लगा दोपहर का सूरज भी

कभी बदन के लिए इक किरन ज़ियादा हुई

दिये अब शहर में रौशन नहीं हैं

हवा की हुक्मरानी हो गई क्या

लफ़्ज़ भी जिस अहद में खो बैठे अपना ए'तिबार

ख़ामुशी को इस में कितना मो'तबर मैं ने किया

ब-नाम-ए-अम्न-ओ-अमाँ कौन मारा जाएगा

जाने आज यहाँ कौन मारा जाएगा

पुस्तकें 3

 

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