नासिर ज़ैदी
ग़ज़ल 22
नज़्म 1
अशआर 8
रात सुनसान है गली ख़ामोश
फिर रहा है इक अजनबी ख़ामोश
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मैं बे-हुनर था मगर सोहबत-ए-हुनर में रहा
शुऊ'र बख़्शा हमा-रंग महफ़िलों ने मुझे
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वो भी क्या दिन थे कि जब इश्क़ किया करते थे
हम जिसे चाहते थे चूम लिया करते थे
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हाँ ये ख़ता हुई थी कि हम उठ के चल दिए
तुम ने भी तो पलट के पुकारा नहीं हमें
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देखा उसे तो आँख से आँसू निकल पड़े
दरिया अगरचे ख़ुश्क था पानी तहों में था
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