नत्थन लाल बहजत के शेर
हम अज़ल से तालिब-ए-दीदार बहजत हैं भला
किस तरह होवे बिना देखे बुत-ए-गोकुल के कल
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काम है नंद पिसर से बहजत
और मख़्लूक़ को क्या करते हैं
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