नवेद रज़ा के शेर
जुदा हुए तो जुदाई में ये कमाल भी था
कि उस से राब्ता टूटा भी था बहाल भी था
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दिल पर तेरी चुप से लगने वाला दाग़
ऐसा दाग़ है जिस को धो नहीं सकता मैं
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मैं ख़ुद को दूसरों से क्या जुदा करूँ
बहुत मिला-जुला दिया गया मुझे
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