नवीन जोशी
ग़ज़ल 51
अशआर 20
न जज़्बात से ये सफ़र तय हुआ
न दिल से कभी ये ज़बाँ तक गए
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फ़ासलों में रहा क़ुर्बतों का गुमाँ
क़ुर्बतों में कहीं फ़ासला रह गया
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रहूँगा जश्न-ज़दा मैं बहाने क्या कम हैं
तू रक़्स देखना मेरा मिरी तबाही पे
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है वजूद उस का जो काग़ज़ पे करे साबित ये
बाज़ औक़ात है काग़ज़ बड़ा औक़ात से अब
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