नवनीत शर्मा
ग़ज़ल 11
अशआर 8
जिया हूँ उम्र भर मैं भी अकेला
उसे भी क्या मिला नाराज़गी से
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अपना बादल तलाशने के लिए
उमर भर धूप में नहाए हम
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फ़ोन पर बात हुई उस से तो अंदाज़ा हुआ
अपनी आवाज़ में बस आज ही शामिल हुआ मैं
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एक तस्वीर को हटाया बस
दिल की दीवार ख़ाली ख़ाली है
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मिरे अंदर मिरा कुछ भी नहीं बस तू है बाक़ी
तिरे अंदर बता प्यारे मैं अब कितना बचा हूँ
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