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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

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नवाब शाहाबादी

नवाब शाहाबादी

ग़ज़ल 2

 

अशआर 2

जाने क्यूँ दोज़ख़ से बद-तर हो गए हालात आज

रश्क-ए-जन्नत कल तलक हिन्दोस्ताँ मेरा भी था

एहसास मुझ को इतना भी अब तो नहीं 'नवाब'

मैं जी रहा हूँ आज भी कि मर गया हूँ मैं

 

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