नवाब शाहाबादी के शेर
एहसास मुझ को इतना भी अब तो नहीं 'नवाब'
मैं जी रहा हूँ आज भी कि मर गया हूँ मैं
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जाने क्यूँ दोज़ख़ से बद-तर हो गए हालात आज
रश्क-ए-जन्नत कल तलक हिन्दोस्ताँ मेरा भी था
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