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नाज़ वाई

नाज़ वाई

अशआर 3

बे-ख़ुदी ने कर दिया जज़्बात-ए-दिल से बे-नियाज़

अब तिरा मिलना मिलना सब बराबर हो गया

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ख़ामुशी अर्ज़-ए-हाल है शायद

मेरी सूरत सवाल है शायद

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जब ज़बानों पे तुम से तू आया

ख़ाक फिर लुत्फ़-ए-गुफ़्तुगू आया

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