नज़र हैदराबादी
ग़ज़ल 4
नज़्म 1
अशआर 2
इसी ख़याल में हर शाम-ए-इंतिज़ार कटी
वो आ रहे हैं वो आए वो आए जाते हैं
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इस चश्म-ए-सियह-मस्त पे गेसू हैं परेशाँ
मय-ख़ाने पे घनघोर घटा खेल रही है
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