नज़र जावेद
ग़ज़ल 4
अशआर 5
मिट्टी की आवाज़ सुनी जब मिट्टी ने
साँसों की सब खींचा-तानी ख़त्म हुई
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ज़िंदा रहने के तक़ाज़ों ने मुझे मार दिया
सर पे 'जावेद' अजब अहद-ए-मसाइल आया
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ये तो ऐ 'जावेद' गुज़रे मौसमों की राख है
आख़िरश क्या ढूँढता है तू ख़स-ओ-ख़ाशाक मैं
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वार हर एक मिरे ज़ख़्म का हामिल आया
अपनी तलवार के मैं ख़ुद ही मुक़ाबिल आया
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अपने होने की अर्ज़ानी ख़त्म हुई
मुश्किल से ये तन-आसानी ख़त्म हुई
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