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नज़ीर सिद्दीक़ी

1930 - 2001 | इस्लामाबाद, पाकिस्तान

नज़ीर सिद्दीक़ी

ग़ज़ल 14

अशआर 8

जो लोग मौत को ज़ालिम क़रार देते हैं

ख़ुदा मिलाए उन्हें ज़िंदगी के मारों से

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और ही वो लोग हैं जिन को है यज़्दाँ की तलाश

मुझ को इंसानों की दुनिया में है इंसाँ की तलाश

किसी की मेहरबानी से मोहब्बत मुतमइन क्या हो

मोहब्बत तो मोहब्बत से भी आसूदा नहीं होती

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आए तो दिल था बाग़ बाग़ और गए तो दाग़ दाग़

कितनी ख़ुशी वो लाए थे कितना मलाल दे गए

रात से शिकायत क्या बस तुम्हीं से कहना है

तुम ज़रा ठहर जाओ रात कब ठहरती है

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पुस्तकें 18

चित्र शायरी 1

 

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