नीना सहर
ग़ज़ल 15
अशआर 7
कल तिरे एहसास की बारिश तले
मेरा सूना-पन नहाया देर तक
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हसरत-ए-मौसम-ए-गुलाब हूँ मैं
सच न हो पाएगा वो ख़्वाब हूँ मैं
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ज़ख़्म भी अब हसीन लगते हैं
तेरे हाथों फ़रेब खाने पर
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मिरी प्यास का तराना यूँ समझ न आ सकेगा
मुझे आज सुन के देखो मिरी ख़ामोशी से आगे
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कैसे होती है शब की सहर देखते
काश हम भी कभी जाग कर देखते
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