नीरज गोस्वामी
ग़ज़ल 13
अशआर 9
घुटन तड़पन उदासी अश्क रुस्वाई अकेला-पन
बग़ैर इन के अधूरी इश्क़ की हर इक कहानी है
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मुझे रास वीरानियाँ आ गई हैं
तिरी याद भी अब सताती नहीं है
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मुश्किलों में मुस्कुराना सीखिए
फूल बंजर में उगाना सीखिए
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सोचता हूँ ये सोच कर मैं उसे
वो भी ऐसे ही सोचता है मुझे
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है जिन के बाज़ुओं में दम वो दरिया पार कर लेंगे
बहुत मुमकिन है डूबें वो जो बैठे हैं सफ़ीने में
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