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jis ke hote hue hote the zamāne mere

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निसार जयराजपुरी

1946 | आज़मगढ़, भारत

निसार जयराजपुरी

दोहा 4

जाते जाते ये समय यादें कुछ दे जाए

पिंजरे से मैना उड़ी परछाईं रह जाए

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सोने से करता फिरे है तू उस का मोल

तू क्या जाने बावरे माटी है अनमोल

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तन्हा बचा सकेगा कैसे खाता फिरे थपेड़

रोए बैठा मोड़ पर बरगद का एक पेड़

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रेन बसेरा आज याँ कल होगा किस ओर

कुछ तुझ को मालूम है आने वाले भोर

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पुस्तकें 8

 

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