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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

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ओबैदुर रहमान

1961 - 2014 | दिल्ली, भारत

ओबैदुर रहमान

ग़ज़ल 26

अशआर 18

आँगन आँगन ख़ून के छींटे चेहरा चेहरा बे-चेहरा

किस किस घर का ज़िक्र करूँ में किस किस के सदमात लिखूँ

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टूटता रहता है मुझ में ख़ुद मिरा अपना वजूद

मेरे अंदर कोई मुझ से बरसर-ए-पैकार है

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तामीर-ओ-तरक़्क़ी वाले हैं कहिए भी तो उन को क्या कहिए

जो शीश-महल में बैठे हुए मज़दूर की बातें करते हैं

बच्चों को हम एक खिलौना भी दे सके

ग़म और बढ़ गया है जो त्यौहार आए हैं

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हमें हिजरत समझ में इतनी आई

परिंदा आब-ओ-दाना चाहता है

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